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जानिये दंतेश्वरी मंदिर के अनोखे रहस्य !!

भाई जी की डोली के साथ ही फागुन नवमी दशमी एकादशी द्वादशी को लमहा मार कोडरी मार चितर और गौर मार की रस्म होती है।

PUBLISHED BY -LISHA DHIGE

यह शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है। दंतेश्वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दर्जा प्राप्त है। हजारों वर्षों से यह शक्तिपीठ श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है। साल में शारदीय और चैत्र नवरात्रि के अलावा माई जी के सम्मान में फागुन मंडई का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

दंतेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्थित है। दंतेश्वरी मंदिर देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है जबकि तंत्रचूडामणि में 52 शक्ति पीठों का उल्लेख किया गया है। अन्य ग्रंथों में इनकी संख्या 108 तक बताई गई है। दंतेवाड़ा को देवी पुराण के 51 शक्तिपीठों में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन इसे देवी का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है।

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मान्यता है कि यहां सती का दांत गिरा था, इसलिए इस स्थान का नाम दंतेवाड़ा और माता का नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। दंतेश्वरी देवी दंतेश्वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है। दंतेश्वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दर्जा प्राप्त है। इस मंदिर में मां के दर्शन करने के लिए लुंगी या धोती पहनकर ही मंदिर जाना पड़ता है। मंदिर में सिले हुए कपड़े पहनना मना है। ‘

मंदिर निर्माण की कथा

अन्नम देव के रुकते ही देवी मॉ भी रुक जाने वाली थी अनम देव ने चलना शुरू किया और भी कई दिन और कई रात चलते रहे। चलते-चलते शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर पहुंचे यहां उन्होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज महसूस नहीं हुई तो वे वहीं रुक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्होंने पीछे पलटकर देखा माता तब नदी पार कर ही रही थी।

राजा के रुकते ही देवी मॉ भी रुक गई और उन्होंने आगे जाने से इंकार कर दिया दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधन पायल की आवाज पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में की पायल की आवाज नहीं आ रही है शायद देवी मॉ नहीं आ रही है सोच कर पीछे पलट गए।

वचन के अनुसार देवी मॉ के लिए राजा ने शंखिनी डंकिनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर यानी मंदिर बनवा दिया तब से देवी मॉ वहीं स्थापित हैं दंतेश्वरी मंदिर Danteshwari temple के पास ही शंखिनी और डंकिनी नदी के संगम पर मां दंतेश्वरी के चरणों के चिह्न मौजूद है और यहां सच्चे मन से कोई भी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

अद्भुत है यह मंदिर

दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की मूर्ति अद्वितीय छ: भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खणंक त्रिशूल और बाएं हाथ में घंटी पद और राक्षस के बाल माय धारण किए हुए हैं यह मूर्ति नक्काशी युक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरूप है माई के सिर के ऊपर छात्र है जो चांदी से निर्मित है वस्त्र आभूषण से अलंकृत है।

द्वार पर दो द्वारपाल दाएं बाएं खड़े हैं जो चार हाथ युक्त है बाए हाथ सर और दाएं हाथ गधा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है 21 स्तंभों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश विष्णु शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में स्थापित हैं मंदिर के गर्भ गृह सिले हुए वस्त्र पहन का प्रवेश प्रतिबंधित है।

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मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीय कालीन गरुड़ स्तंभ से अड्ढवस्थित है। 32 काष्ठड्ढ खंबो और खपरैल की छत वाले महामंडल मंदिर के प्रवेश के सिंहद्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है माई जी का प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही मंगल आरती की जाती है।

माता की छोटी बहन मां भुनेश्वरी देवी

माता की छोटी बहन मां भुनेश्वरी देवी का मंदीर मां दंतेश्वरी मंदिर के पास ही है मां भुनेश्वरी कुमारी मावली माता मानिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां भुनेश्वरी देवी आंध्र प्रदेश में मां खोदांबा के नाम से विख्यात है और लाखों श्रद्धालु उनके भक्त हैं छोटी माता भुनेश्वरी देवी और माई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है।

लगभग 4 फीट ऊंची मां भुनेश्वरी की अष्टभुजी प्रतिमा अद्वितीय है मंदिर के गर्भ गृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है वही भगवान विष्णु अवतार नरसिंह माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा प्रस्थापित है कहा जाता है कि मनीकेश्वरी मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में हुआ।

फाल्गुन मड़ई उत्सव का आयोजन

मड़ई उत्सव का आयोजन फागुन होली से 10 दिन पूर्व यहां फागुन मेले का आयोजन होता है जिसमें आदिवासी संस्कृति के विश्वास और परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है 9 दिनों तक चलने वाले फागुन मंडई में आदिवासी संस्कृति की अलग-अलग रस्मो की अदायगी होती है।

मडई में ग्राम देवी देवताओं की ध्वजा छत्तर और ध्वजा दण्ड पुजारियों के साथ शामिल होती है करीब ढाई सौ से भी ज्यादा देवी देवताओं के साथ माई की डोली प्रतिदिन नगर भ्रमण कर नारायण मंदिर तक जाती है लौटकर पुनरू मंदिर आती है इस दौरान नाच मंडली की रस्म होती है। जिसमें बंजारा समुदाय द्वारा किए जाने वाला लमान नाचा के साथ ही भतरी नाच, फाग गीत गाया जाता है।

भाई जी की डोली के साथ ही फागुन नवमी दशमी एकादशी द्वादशी को लमहा मार कोडरी मार चितर और गौर मार की रस्म होती है। मंडई की अंतिम दिन सामूहिक नृत्य में सैकड़ों युवक युवती शामिल होते हैं और रात भर इस का आनंद लेते हैं फागुन मंडई में दंतेश्वरी मंदिर में बस्तर अंचल के लाखों लोगों की भागीदारी होती है।

bulandmedia

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