Mahakaleshwar Jyotirlinga : महाकालेश्वर का स्वर्णिम इतिहास !
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां भगवान शिव काल के काल महाकाल के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। महाकाल मंदिर से कई प्राचीन परंपराएं और रहस्य जुड़े हुए हैं।
PUBLISHED BY – LISHA DHIGE
Mahakaleshwar Jyotirlinga : मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां भगवान शिव काल के काल महाकाल के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। महाकाल मंदिर से कई प्राचीन परंपराएं और रहस्य जुड़े हुए हैं।
कहा जाता है कि अवंतिकापुरी के राजा विक्रमादित्य बाबा महाकाल के भक्त थे और भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्होंने वहां लगभग 132 वर्षों तक शासन किया। महाकालेश्वर मंदिर कितना प्राचीन है, इसकी सटीक जानकारी प्राप्त कर पाना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन सदियों से यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र रहा है।
मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। देश मुगल और ब्रिटिश शासन के अधीन होने के बाद भी इस पवित्र स्थान ने अपनी प्राचीन पहचान नहीं खोई। सनातन धर्म की ध्वजा को ऊंचा रखने के लिए धर्म की रक्षा से जुड़े लोगों ने विभिन्न प्रयासों से ज्योतिर्लिंग को आक्रमणकारियों से सुरक्षित रखा।
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दर्शनार्थियों को कई दशकों बाद वर्तमान समय में मंदिर का एक अलग रूप देखने को मिलेगा, वहीं आज (11 अक्टूबर) महाकाल लोक के उद्घाटन के बाद लोगों को उज्जैन का अलग ही वैभव देखने को मिलेगा। आइए आज के ऐतिहासिक दिन पर हम आपको महाकालेश्वर के इतिहास से रूबरू कराते हैं।
कुएं में छिपाकर रखा गया था ज्योतिर्लिंग
कहा जाता है कि महाकालेश्वर मंदिर को 1235 में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। आक्रमण के दौरान, महाकाल मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए लगभग 550 वर्षों तक पास के कुएं में रखा गया था। . औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों से एक मस्जिद बनवाई। मंदिर के विनाश के बाद, महाकाल मंदिर 500 से अधिक वर्षों तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहा और ध्वस्त मंदिर में ही महादेव की पूजा की गई, लेकिन जब कई वर्षों बाद 22 नवंबर 1728 को मराठा शूरवीर रानोजी राव सिंधिया से हार गए।
जब वह हार गया, तो उसने मंदिर को तोड़कर बनाई गई मस्जिद को तोड़ दिया, और 1732 में उसने मंदिर का पुनर्निर्माण किया और उज्जैन में एक ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। यह राणोजी ही थे जिन्होंने कोटि तीर्थ कुंड से बाबा महाकाल ज्योतिर्लिंग प्राप्त किया और महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। फिर राणो जी ने 500 साल से बंद सिंहस्थ आयोजन को भी फिर से शुरू किया।
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इन राजाओं ने कराया मंदिर का पुनर्निर्माण ( Mahakaleshwar Jyotirlinga )
महाकवि कालिदास के मेघदूत में महाकाल मंदिर की संध्या आरती का उल्लेख मिलता है। साथ ही इस पुस्तक में महाकाल वन का भी परिचय दिया गया है। कहा जाता है कि उज्जैन के तत्कालीन राजा विक्रमादित्य ने महाकाल मंदिर का विस्तार करवाया था। उन्होंने मंदिर परिसर में एक धर्म सभा आयोजित की जहाँ से उन्होंने न्याय किया।
राजा विक्रमादित्य ने भी कई तरह की मूर्तियां बनवाई थीं। वहीं, बाण भट्ट की 7वीं शताब्दी की कादम्बिनी में महाकाल मंदिर का विस्तार से वर्णन किया गया है। 11वीं सदी में राजा भोज ने देश में महाकाल मंदिर समेत कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। उन्होंने महाकाल मंदिर की मीनार को पहले से भी ऊंचा कर दिया।
राजस्थान के राजाओं का भी रहा योगदान
राजस्थान के राजा जयसिंह द्वितीय ने 1280 में महाकाल के शीर्ष पर एक शिलालेख बनवाया था। इसके साथ ही उन्होंने एक कोटि तीर्थ भी बनवाया था। जबकि 1300 ईस्वी में रणथंभौर के राजा हमीर शिप्रा नदी में स्नान कर बाबा महाकाल के दर्शन करने आए थे। उन्होंने महाकाल मंदिर की जर्जर हालत को देखते हुए इसका विस्तार किया। 1700 में मेवाड़ के राजा जगत सिंह तीर्थ यात्रा पर उज्जैन गए और वहां कई निर्माण कार्य करवाए।
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Shri Mahakal Lok
बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में आज (11 अक्टूबर) ऐतिहासिक महाकाल लोक का लोकार्पण होगा। पहले चरण का काम पूरा होने के बाद महाकाल लोक को आधुनिक रूप मिला। श्री महाकालेश्वर मंदिर देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। महाकालेश्वर मंदिर के विस्तार के बाद महाकाल लोक पृथ्वी पर देवलोक के रूप में कार्य करेगा।
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परिसर में लगभग 200 छोटी और बड़ी मूर्तियाँ हैं जो भगवान शिव की लीलाओं को दर्शाती हैं। पीएम मोदी आज शाम 6.30 बजे महाकाल लोक का उद्घाटन करेंगे, जिसके बाद दो दिन बाद इसे दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया जाएगा. लेकिन महाकाल लोक के उद्घाटन से पहले हम आपको तस्वीरों में इन दिव्य मूर्तियों के दर्शन कराएंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर से भी ज्यादा बड़ा है महाकाल लोक
विस्तार से पहले मंदिर परिसर का क्षेत्रफल 2.82 हेक्टेयर था, जो परियोजना के पूरा होने के बाद बढ़कर 20.23 हेक्टेयर हो गया। 900 मीटर लंबी और 25 फीट ऊंची लाल पत्थर की दीवारें शिव महापुराण में उल्लिखित घटनाओं को भित्ति चित्रों के रूप में दर्शाती हैं। कमल कुंड (व्यास 50), पंचमुखी शिव स्तम्भ (50 फीट), सप्तऋषि (20 फीट), त्रिवेणी मंडपम (क्षेत्र 18600 वर्ग फीट) पूरा हो चुका है। सड़कों का सौंदर्यीकरण किया जाएगा और सिंहस्थ की थीम पर रामघाट पर एक डायनेमिक लाइट शो आयोजित किया जाएगा।
शिव की लीलाओं का चित्रण
भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया और भगवान विष्णु इसके रक्षक हैं। महादेव को सृष्टि का संहारक माना जाता था। भगवान ने दुष्टों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अलग-अलग रूपों में 9 बार अवतार लिया। त्रिपुरासुर का वध करने के कारण वे त्रिपुरारी कहलाए, काल का वध करने के बाद वे संसार में महाकाल के नाम से विख्यात हुए। महाकाल लोक में भगवान शिव की कई विशाल मूर्तियाँ स्थापित की गईं जहाँ भगवान की लीलाओं का अद्भुत प्रदर्शन किया गया। देश की सबसे बड़ी भित्ति महाकाल लोक में तराशी गई है।
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माला के मोती की तरह हैं 108 स्तंभ ( Mahakaleshwar Jyotirlinga )
महाकाल लोक में 108 विशाल स्तंभ बनाए गए हैं। इन पर भगवान महादेव, शक्ति समेत भगवान गणेश और कार्तिकेय के चित्र उकेरे गए हैं। यह चित्र भी प्रतिमा के स्वरूप में बने हैं और इनमें शिव, शक्ति, कार्तिकेय और गणेश की लीलाओं का वर्णन है। श्रद्धालुओं को मंदिर जाने में सुगमता के लिए 900 मीटर लंबा महाकाल पथ बना है। नवग्रह वाटिका (6 एवं 11 फीट), मुक्ताकाश रंगमंच (लगभग 500 व्यक्ति क्षमता का), स्वागत संकुल की दुकानें, त्रिपुरासुर वध, शिवपुराण आधारित भित्ति चित्र दीवार अपनी मनमोहक आभा बिखेर रही हैं।