छत्तीसगढ़

फर्जी बिल का खेल: सरकारी खजाने को लगाया लाखों का चूना!

शासन को आर्थिक क्षति: जांच नहीं हुई तो बढ़ सकता है घोटाला….!

रायपुर – छत्तीसगढ़ में एक चौंकाने वाला मामला सामने आ रहा है जिसमें एक व्याख्याता ने खैरात के सफर में ही लाखों का बिल शासन को थमा दिया और बकायदा पैसे भी निकाल लिए।  यह कारनामा कोई एक साल का नहीं बल्कि पिछले 9 सालों से चला आ रहा है। व्याख्याता अपनी कार की यात्रा का फर्जी बिल प्रस्तुत करता और पैसे निकाल लेता है। दरअसल यह कारनामा सूरजपुर जिले के शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज सुरजपुर का है। यहां व्याख्याता के पद पर पदस्थ एन योगेश ने सन 2016 से अब तक कई लाख रुपए डकार गए हैं।

दरअसल शासकीय कार्यों से व्याख्याता रायपुर और भिलाई जाया करते थे| नियम के अनुसार उन्हें यात्रा भत्ता के लिए सफर का बिल पेश करना पड़ता था| मजेदार बात है की अंबिकापुर से रायपुर की 350 किमी और भिलाई की दूरी 400 किमी है| जो की बस या ट्रेन से सफर करने पर किराया लगभग 1 हजार रुपए के आसपास आता है| जबकि टेक्सी या स्वयं के कार का किराया लगभग 8000 – 10000 हजार रुपए आता है| इसी बात का फायदा व्याख्याता उठाना शुरू कर दिया| कॉलेज से माह में 3 से 4 बार किसी ना किसी काम से वह यात्रा करता और मोटा बिल कॉलेज को थमा देता। जिस कार के बिल वह पेश करता था। वह कार या तो इनके किसी पहचान वाले के यहां या संस्था के छात्रावास में या इनके शासकीय निवास में खड़ी देखी गई। जबकि व्याख्याता अक्सर रायपुर जाने वाले लोगों के सम्पर्क में रहता और उनके साथ ही चला जाता और बिल अपनी कार का पेश कर देता। व्याख्याता कभी-कभी बस और ट्रेन में भी सफर किया है। किन्तु बिल हर बार की तरह अपनी कार का ही लगाया है।

व्याख्याता एन योगेश उक्त जिले के ट्रेजरी कार्यालय में सांठगांठ कर सभी यात्रा देयकों का भुगतान प्राप्त भी करते आ रहे हैं। वे यात्रा भत्ता देयकों में झूठा प्रमाण पत्र दे देते है कि मैं अपने स्वयं के वाहन से यात्रा किया हूं जबकि उस अवधि में इनकी कार या तो इनके किसी पहचान वाले के यहां या संस्था के छात्रावास में या इनके शासकीय निवास में खड़ी देखी गई है। उनका यह कृत्य शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाने के साथ ही  स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करते नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं यात्रा भत्ता के लिए अतिरिक्त राशि आवंटन कराने के लिए संचालनालय में भी इनकी साठ गांठ बताया जा रहा है। जिसकी जांच होने की नितांत आवश्यकता है।ऐसा ना होने पर भविष्य में ये शासन को कोई बड़ा आर्थिक नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। इतना ही नहीं अपने प्रभारी प्राचार्य का पद प्राप्त करने के लिए और प्रभारी प्राचार्य रहकर पैसा कमाने की मंसा से इन्होंने अपने से सिनियर व्यक्ति की फाइल रुकवाकर अपने स्वयं के नाम आहरण संवितरण अधिकारी का आदेश भी हासिल कर लिया जाना बताया जा रहा हैं। यह भी बताया जा रहा की संस्था के चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों को परेशान कर अपना दबदबा जमाने का प्रयास करते आ रहे  है। जिसकी उच्च स्तरीय विभागीय जांच की जानी चाहिए। ऐसा एक आवेदक ने शासन प्रशासन से मांग की है।            

bulandmedia

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