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जानिये क्यों अधूरा है, इस कथा के बिना करवाचौथ का व्रत !

इस कथा के बिना अधूरा है करवाचौथ का व्रत,जानिए पूजाविधि और मुहूर्त

(Published by -Lisha Dhige)

करवा चौथ के दिन चन्द्रमा की पूजा कर महिलाए ये प्रार्थना करती है कि उनके प्रिय से उनको वियोग न सहना पड़े। सुहागन महिलाएं चौथ वाले दिन देवी पार्वती के स्वरूप चौथ माता, भगवान शिव और कार्तिकेय के साथ श्री गणेशजी की पूजा की जाती है।

पूजा का विधि विधान

इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान करती हैं और व्रत रखने और सास द्वारा दी गई सरगी का सेवन करने का संकल्प लेती हैं। सरगी में मिठाई, फल, सेंवई, पूरी और सजावट का सामान दिया जाता है। इसके बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरू होता है, जो महिलाएं निर्जल व्रत नहीं कर सकतीं, वे फल, दूध, दही, जूस, नारियल पानी का सेवन कर सकती हैं। व्रत के दिन शाम के समय लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं, उस पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, अन्यथा आप शिव परिवार की तस्वीर भी रख सकते हैं। एक बर्तन में पानी भरकर उस पर कुम्हार डाल कर, कलावा बांधकर, ढक्कन में पानी और चीनी भरकर रोली से करवा पर स्वस्तिक बना लें। इसके बाद धूप, दीप, अक्षत और फूल चढ़ाकर भगवान की पूजा करें, पूजा करने के बाद हाथ में गेहूं के दाने लेकर भक्ति के साथ चौथमाता की कथा सुनें या पढ़ें। इसके बाद रात में जब चंद्रमा उदय हो तो चंद्रदेव को अर्ध्य दें और बड़ों का आशीर्वाद लें।

करवा चौथ 2022: तिथि और शुभ मुहूर्त
तिथि: 
चतुर्थी
पक्ष: कृष्ण पक्ष
माह: कार्तिक
दिन: गुरुवार
करवा चौथ पूजा मुहूर्त: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 05 बजकर 54 मिनट से 07 बजकर 03 मिनट तक
अवधि: 1 घंटा 09 मिनट
चंद्रोदय: 13 अक्टूबर, 2022 की शाम 08 बजकर 10 मिनट पर

व्रत की कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार के 7 लड़के और 1 लड़की थी। एक बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन को भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्ध्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी। साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से बेचैन चेहरा देख उन्हे बेहद दुःख  हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और  एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखों, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्ध्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा-बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को ध्यान न देते हुए वो अपने भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विध्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण साहूकार की बेटी का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आर्शीवाद ग्रहण किया। इस प्रकार साहूकार की बेटी की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया। इस प्रकार यदि कोई भी छल-कपट, अंहकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्ति भाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

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