राममय हुआ राजिम का कुंभ कल्प : रामोत्सव की थीम पर मनाया जा रहा राजिम कुंभ कल्प मेला
राजिम । राजिम का कुंभ कल्प-2024 इस बार भगवान श्रीराम को समर्पित करते हुए पूरे कुंभ की संरचना भगवान श्रीराम की थीम पर आधारित है। इसलिए कुंभ मेला परिसर में जगह-जगह भगवान श्रीराम और उनके आराध्य भगवान सदाशिव की प्रतिमाएं रंगोली और कट-आउट जगह-जगह नजर आने से पूरा राजिम राममय नजर आ रहा है। यह इत्तेफाक ही है कि यहां पर आने वाले स्थानीय लोक मंच के कलाकार सहित राष्ट्रिय स्तर के कलाकारों की गायिकी में भी राम रस बरसता हुआ नजर आ रहा है।
भगवान राजीव लोचन भगवान जो स्वयं विष्णु के अवरात है, तो प्रभु राम भी विष्णु के अवतार है और यहां पर श्रीराम की थीम पर आयोजित कुंभ में जगह-जगह विराजे राम को देखकर ऐसा लगता है मानो छत्तीसगढ़ की इस पावन धरा में स्थित लोमश ऋषि आश्रम में मानो पुनः राम पधारे हो और संगम के तट पर राम का राम से मिलन हो रहा है। इस अनुपम छटा का साक्षात्कार जब शाम को लेजर लाइट और साउंड के माध्यम से होता है तब उपस्थित जन समुदाय भक्ति के उस रोमांच से भाव विभूत हो जाता है जिसका वर्णन करना जन-साधारण के लिए असंभव है इस रोमांच को सिर्फ महसूस किया जा सकता है उसका वर्णन नहीं।
प्रातः कालीन और शाम को अस्ताचलगामी सूर्य की बिदा होती किरणों के साथ जब श्रद्धालु इस संगम में मां चित्रोत्पला गंगा की अपनी श्रद्धा भाव की दीप दान करती है। तब ऐसा लगता है मानो करोड़ो सूर्य इस संगम में उतरकर कुंभ कल्प का पूर्ण लाभ लेने धरा पर उतर आये है और भगवान श्री राजीव लोचन की स्तुति गान कर रहें है। कुंभ में संगम तट पर होने वाली प्रतिदिन महानदी आरती की स्वर लहरी मंत्रोत्चारण के साथ गुंजता शंखनाद और चहुं ओर फैलती श्रद्धा भक्ति की दिव्य सुगंध पूरे कुंभ माहौल को धर्म की सकारात्मकता के साथ उपस्थित जन समुदाय को आशीर्वाद स्वरूप जिस दिव्य अनुभूति को यहां आकर लोग महसूस करते है वह अवर्णननीय है।
संगम परिक्षेत्र में बने बड़े-बड़े डोम देश-भर के संत महात्माओं के स्वागत में शबरी की तरह बाट जोहते नजर आते है आने वाले कल में इन्हीं डोमो में देश के संत महात्माआें का डेरा होगा जहां से धर्म की कभी न सुखने वाली अविरल धारा की प्रवाह प्रवाहित होगा जिसके चित्रोत्पला से हुए संगम में हर श्रद्धालु डुबकी लगाने का कोई भी अवसर चूंकना नही चाहेगा।
संत समागम में साधुओं द्वारा लगाई गई धर्म-ध्वजा की पताका यहां आने वाली हर भटके हुए राही का मार्ग प्रशस्त करते हुए धर्म का रास्ता दिखाती हुई प्रतीत होती है। पर्व स्नानों पर होने वाले साधु-संतो और नागा-साधुओं का शाही स्नान शाही होकर भी धार्मिक और आस्था का प्रतिमान होता है जो यह संदेश देता है कि जनकल्याण को समर्पित यह साधु-संत कीचड़ मे खिले कमल के समान रहकर समाज और राष्ट्र की सेवा करें।
राजिम का कल्प कुंभ की प्राचीन परंपरागत धरोहर का अनुसरण करते हुए आने वाले हर श्रद्धालुओं को यह संदेश देता है कि गृहस्थ जीवन में अपने तमाम संसारिक कर्तव्यां का संसारिक धर्म निभाते हुए आध्यात्म के प्रति समर्पित होकर धार्मिक आचरण के अनुसार आचरण करते हुए स्वयं संस्कारिक होकर दूसरों को भी संस्कारवान बनाएं। यहीं आशीष राजिम की पुण्य धरा आने वाले अपने हर श्रद्धालुओ की झोली भर-भरकर देती है।