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Khandoba Temple : खंडोबा का चमत्कारी रहस्य !!

खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि खंडोबा की उपासना कर्णाटक से महाराष्ट्र में आई है और खंडोबा महाराष्ट्र और कर्णाटक के बीच सांस्कृतिक संबंध के प्रतीक हैं।

PUBLISHED BY – LISHA DHIGE

येळकोट येळकोट जय मल्हार…..

Khandoba Temple : भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिनमें कोई न कोई कहानी या रहस्य है। ऐसा ही एक मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले के जेजुरी नामक कस्बे में है। इसे खंडोबा मंदिर के नाम से जाना जाता है। मराठी में इसे “खंडोबाची जेजुरी” (खंडोबा की जेजुरी) कहा जाता है। मंदिर 718 मीटर (लगभग 2,356 फीट) की ऊंचाई पर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए करीब 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं जो आपको हैरान कर देंगी।

जेजुरी (Jejuri) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक नगर है। यह खंडोबा के मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। मराठी में इसे ‘खंडोबाची जेजुरी‘ (“खंडोबा की जेजुरी“) के नाम से जाना जाता है।

Khandoba Temple
Khandoba Temple

खंडोबा भगवान कौन है?

इस मंदिर के प्रमुख देवता को भगवान खंडोबा कहा जाता है। उन्हें मार्तंड भैरव और मल्हारी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है जो भगवान शिव का दूसरा रूप है। भगवान खंडोबा की मूर्ति घोड़े पर सवार एक योद्धा के रूप में है। उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए एक बड़ी तलवार (खड्ग) है। Khandoba Temple खंडोबा को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर मल्ल और मणि राक्षस के अत्याचार बढ़ने के बाद उन्हें खत्म करने भगवान शिव ने मार्तंड भैरव का अवतार लिया था।

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खंडोबा मंदिर मुख्य रूप से दो भागों में बंटा हुआ है। पहले भाग को मंडप कहा जाता है जबकि दूसरे भाग में गर्भगृह है जिसमें भगवान खंडोबा की मूर्ति स्थापित है। हेमाडपंथी शैली में बने इस मंदिर में पीतल का बना एक बड़ा कछुआ भी है। इसके अलावा भी कई ऐतिहासिक महत्व के हथियार मंदिर में रखे गए हैं। दशहरे के दिन भारी तलवार को दांतों से लंबे समय तक पकड़ने की प्रतियोगिता भी होती है, जो बहुत प्रसिद्ध है।

Khandoba Temple
Khandoba Temple

इतिहास ( Khandoba Temple )

ऐसा माना जाता है कि मल्ल और मणि नामक दो राक्षसी भाइयों का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत उग्र हो गया था और इसलिए भगवान शिव ने मार्तंड भैरव का अवतार लिया। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने मल्ल का सिर काट दिया और उसे मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया, जबकि मणि ने भगवान से मानव जाति के कल्याण के लिए वरदान मांगा और इस तरह उसे छोड़ दिया। इस कथा का एक संदर्भ ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है।

भगवान खंडोबा को एक निर्दयी देवता माना जाता है और इसलिए उनकी पूजा के नियम बहुत सख्त हैं। किसी भी सामान्य धार्मिक सेवा के रूप में उन्हें हल्दी और फूल चढ़ाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी मंदिर के बाहर देवता को बकरे का मांस भी चढ़ाया जाता है।

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परिचय

Khandoba Temple
Khandoba Temple

खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि खंडोबा की उपासना कर्णाटक से महाराष्ट्र में आई है और खंडोबा महाराष्ट्र और कर्णाटक के बीच सांस्कृतिक संबंध के प्रतीक हैं। Khandoba Temple कर्णाटक में खंडोबा मल्लारी, मल्लारि मार्तंड, मैलार आदि नाम से जाने जाते हैं। वहाँ उनके बारह प्रसिद्ध स्थान बताए जाते हैं। मद्रास के उपनगर ‘मैलापुर’ के संबंध में कहा जाता है कि मूलत: उसका नाम इन्हीं के नाम पर मैलारपुर था। दक्षिण में कुछ मुसलमान उन्हें मल्लू खाँ के नाम से पूजते हैं। महाराष्ट्र में इनके कन्नड़ नाम मैलार का संस्कृतकरण कर ‘मल्लारि माहात्म्य’ नाम से एक ग्रंथ की रचना हुई है। उसमें उनके संबंध में जो कथा दी गई है वह इस प्रकार है-

कृतयुग में मणिचूल पर्वत पर धर्मपुत्र सप्तर्षि तप कर रहे थे। वहाँ मणि और मल्ल नामक दो दैत्यों ने आकर उपद्रव करना आरंभ किया और ऋषि के तपोवन को ध्वस्त कर दिया। तब शोकाकुल ऋषि इंद्र के पास गए। इंद्र ने कहा कि मणि-मल्ल दोनों दैत्यों को अमर रहने का वरदान ब्रह्मा ने दे रखा है। Khandoba Temple इस कारण वे उनका वध करने में असमर्थ हैं। उन्होंने ऋषि को विष्णु के पास जाने की सलाह दी। ऋषि विष्णु के पास गए। जब विष्णु ने भी अपनी असमर्थता प्रकट की तब वे शिव के पास आए। शिव ने जब ऋषि की दु:खगाथा सुनी तो वे दु:खी हुए और उन्होंने मणि और मल्ल के विनाश के लिये मार्तंड भैरव का रूप धारण किया और कार्तिकेय के नेतृत्व में अपने सात कोटि गणों को लेकर मणिचूल पर्वत पर पहुँचे।

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वहां उनका मणि-मल्ल के साथ तुमुल युद्ध हुआ। अंत में मार्तंड भैरव ने मणि के वक्षस्थल को विदीर्ण कर दिया और वह भूमि पर गिर पड़ा। गिरने पर उसने शिव से प्रार्थना की कि वह उसे अश्व के रूप में अपने निकट रहने की अनुमति दें। शिव ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया। Khandoba Temple इसी प्रकार मल्ल ने भी मरने से पूर्व मार्तंड भैरव से अनुरोध किया कि मेरे नाम से आप मल्लारि (मल्ल+अरि) नाम से ख्यात हों।

तब सप्तऋषि ने भयमुक्त होकर मार्तंड भैरव से स्वयंभूलिंग के रूप में प्रेमपुर (पेंबर) में रहने का अनुरोध किया और उन्होंने उनका भी अनुरोध मान लिया। इस प्रकार मल्लारि (मैलार) की कथा प्रख्यात हुई। मल्लारि (मैलार) अर्थात् खंडोबा को श्वेत अश्व पर आरूढ़ अंकित किया जाता है। उनके साथ कुत्ता रहता है। उनके हाथ में खड्ग (खंडा) और त्रिशूल होता है।

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